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2023-01-09T00:00:00Z
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https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/deoria/police-broke-door-of-house-and-took-out-body-of-bjp-worker-in-deoria
Headline
Deoria News: देवरिया में घर के अंदर मृत मिला भाजपा कार्यकर्ता, दरवाजा तोड़कर निकाला गया शव
Date Published
2023-01-09T14:14:53+05:30
Date Published Raw
2023-01-09T14:14:53+05:30
Date Modified
2023-01-09T14:14:53+05:30
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2023-01-09T14:14:53+05:30
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    • Name: vivek shukla
    • Name Raw: vivek shukla
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देवरिया जनपद के रामपुर कारखाना थाना क्षेत्र के मदरापाली भरथराय गांव में रविवार देर रात पुलिस ने भाजपा कार्यकर्ता
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देवरिया जनपद के रामपुर कारखाना थाना क्षेत्र के मदरापाली भरथराय गांव में रविवार देर रात पुलिस ने भाजपा कार्यकर्ता के घर का दरवाजा तोड़कर उसका शव बरामद किया। इस बात की जानकारी होते ही गांव में सनसनी फैल गई।

थानाक्षेत्र के मदरापाली भरथराय गांव के रहने वाले मुनीब गुप्ता (45) भाजपा के बूथ प्रमुख थे। वह घर पर अकेले रहते थे। उनके पिता ठाकुर प्रसाद गुप्ता, माता व पत्नी की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। शनिवार की सुबह गांव के लोगों ने उन्हें आखिरी बार गांव में देखा था। रविवार देर रात तक दिखाई नहीं देने पर आसपास के लोगों ने उनका पता लगाने की कोशिश की।

दरवाजा अंदर से बंद होने पर खिड़की से झांक कर अंदर देखा तो मुनीब भूमि पर पड़े थे। लोगों ने शोर मचाया और पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने दरवाजा तोड़कर अंदर देखा तो मुनीब गुप्ता की मौत हो चुकी थी। पुलिस ने आवश्यक कार्रवाई की।

मुनीब के तीन बेटे और एक बेटी है। बड़े बेटे बृजेश और दूसरे नंबर का बेटा बाहर कमाने गए हैं। जबकि तीसरे नंबर का बेटा और सबसे छोटी बेटी अपने रिश्तेदार के वहां रहते हैं। घर पर कोई नहीं था। गांव के लोग कुछ समझ नहीं पा रहे कि मुनीब की इस तरह मौत कैसे हो गई।
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देवरिया जनपद के रामपुर कारखाना थाना क्षेत्र के मदरापाली भरथराय गांव में रविवार देर रात पुलिस ने भाजपा कार्यकर्ता के घर का दरवाजा तोड़कर उसका शव बरामद किया। इस बात की जानकारी होते ही गांव में सनसनी फैल गई।

थानाक्षेत्र के मदरापाली भरथराय गांव के रहने वाले मुनीब गुप्ता (45) भाजपा के बूथ प्रमुख थे। वह घर पर अकेले रहते थे। उनके पिता ठाकुर प्रसाद गुप्ता, माता व पत्नी की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। शनिवार की सुबह गांव के लोगों ने उन्हें आखिरी बार गांव में देखा था। रविवार देर रात तक दिखाई नहीं देने पर आसपास के लोगों ने उनका पता लगाने की कोशिश की।

दरवाजा अंदर से बंद होने पर खिड़की से झांक कर अंदर देखा तो मुनीब भूमि पर पड़े थे। लोगों ने शोर मचाया और पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने दरवाजा तोड़कर अंदर देखा तो मुनीब गुप्ता की मौत हो चुकी थी। पुलिस ने आवश्यक कार्रवाई की।

मुनीब के तीन बेटे और एक बेटी है। बड़े बेटे बृजेश और दूसरे नंबर का बेटा बाहर कमाने गए हैं। जबकि तीसरे नंबर का बेटा और सबसे छोटी बेटी अपने रिश्तेदार के वहां रहते हैं। घर पर कोई नहीं था। गांव के लोग कुछ समझ नहीं पा रहे कि मुनीब की इस तरह मौत कैसे हो गई।

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https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/deoria/police-broke-door-of-house-and-took-out-body-of-bjp-worker-in-deoria
Date Downloaded
2022-10-18T00:00:00Z
URL
https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/varanasi/bhu-research-on-nepalese-the-matrilineal-ancestry-of-nepali-populations
Headline
BHU-CCMB का शोध: नेपाली लोगों पर पहला बड़ा अध्ययन, नेपाल के लोगों का DNA भारत और तिब्बत के साथ संबंधित
Date Published
2022-10-18T13:11:38+05:30
Date Published Raw
2022-10-18T13:11:38+05:30
Date Modified
2022-10-18T13:11:38+05:30
Date Modified Raw
2022-10-18T13:11:38+05:30
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    • Name: किरन रौतेला
    • Name Raw: किरन रौतेला
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पर्वत श्रृंखला ने मनुष्य के माइग्रेशन के लिए एक बैरियर का काम किया है, जबकि साथ ही, इसकी घाटियों ने निरंतर व्यापारिक
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हिमालय क्षेत्र का मुख्य भाग होने के कारण, नेपाल दक्षिण और पूर्व एशिया के लोगों के डीएनए के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है। नेपाल की हिमालय पर्वत श्रृंखला ने मनुष्य के माइग्रेशन के लिए एक बैरियर का काम किया है, जबकि साथ ही, इसकी घाटियों ने निरंतर व्यापारिक से रूप लोगों को जोड़ने का काम किया है। इन ऐतिहासिक हिमालयी व्यापार मार्गों के आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व के बावजूद, इस क्षेत्र के लोगों के डीएनए और माइग्रेशन के बारे में बहुत कम जानकारी है। (सीएसआईआर-सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), हैदराबाद, और काशी हिन्दू विश्विद्यालय (बी.एच्.यू.) भारत के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नेपाल की आबादी के मातृ वंश का अध्ययन किया है जिसके परिणाम 15 अक्टूबर 2022 को ह्यूमन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

डीबीटी-सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी), हैदराबाद के निदेशक डॉ के थंगराज ने बताया कि "नेपाली लोगो पर यह पहला सबसे बड़ा अध्ययन है, जहां हमने नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग और काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी सहित नेपाल के विभिन्न जातीय समूहों के 999 व्यक्तियों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए सीक्वेंस का विश्लेषण किया है। और पाया कि अधिकांश नेपाली आबादी ने हिमालय के उचाई पर रहने वाले लोगो की तुलना में तराई की आबादी से अपने मातृ वंश को प्राप्त किया है"।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा की, "भारत और तिब्बत के साथ नेपाल के सांस्कृतिक संबंध उनके अनुवांशिक इतिहास में भी परिलक्षित होते हैं।"

इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों ने शोधकर्ताओं को इतिहास और अतीत की डेमोग्राफ़िक घटनाओं के बारे में कई घटनाक्रमों को पता करने में मदद की जिसने वर्तमान नेपाली आनुवंशिक विविधता को बनाया। अध्ययन के प्रथम लेखक त्रिभुवन विश्वविद्यालय, राजदीप बसनेट ने बताया कि "हमारे अध्ययन से पता चला है कि नेपालियों के प्राचीन अनुवांशिक डीएनए को धीरे-धीरे विभिन्न मिश्रण एपिसोड द्वारा बदल दिया गया था; साथ ही दक्षिणपूर्व तिब्बत के रास्ते 3.8-6 हजार साल पहले लोगो के हिमालय पार करने के प्रमाण मिले है”।
डीएसटी – बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज़, लखनऊ के डॉ. नीरज राय ने कहा कि "नेवार और मगर जैसे तिबेतो-बर्मन समुदायों की ऊंचाई पर रहने वाले तिब्बतियों/शेरपाओं से डीएनए के आधार पर काफी विभिन्नता दिखती है । इतिहास, पुरातात्विक और आनुवंशिक जानकारी का उपयोग करते हुए इस अध्ययन ने हमें नेपाल के तिबेतो-बर्मन समुदायों के जनसंख्या इतिहास को समझने में मदद की है।'
सीएसआईआर-सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के निदेशक डॉ विनय के नंदीकुरी ने कहा, "इस तरह का अध्ययन प्रारंभिक मानव माइग्रेशन और विभिन्न आबादी की आनुवंशिक समानताएं स्थापित की बेहतर समझ के लिए सहायक है।"
अध्ययन का ऑनलाइन लिंकः

सम्पर्क सूत्र - K. Thangaraj (9908213822)
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हिमालय क्षेत्र का मुख्य भाग होने के कारण, नेपाल दक्षिण और पूर्व एशिया के लोगों के डीएनए के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है। नेपाल की हिमालय पर्वत श्रृंखला ने मनुष्य के माइग्रेशन के लिए एक बैरियर का काम किया है, जबकि साथ ही, इसकी घाटियों ने निरंतर व्यापारिक से रूप लोगों को जोड़ने का काम किया है। इन ऐतिहासिक हिमालयी व्यापार मार्गों के आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व के बावजूद, इस क्षेत्र के लोगों के डीएनए और माइग्रेशन के बारे में बहुत कम जानकारी है। (सीएसआईआर-सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), हैदराबाद, और काशी हिन्दू विश्विद्यालय (बी.एच्.यू.) भारत के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नेपाल की आबादी के मातृ वंश का अध्ययन किया है जिसके परिणाम 15 अक्टूबर 2022 को ह्यूमन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

डीबीटी-सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी), हैदराबाद के निदेशक डॉ के थंगराज ने बताया कि "नेपाली लोगो पर यह पहला सबसे बड़ा अध्ययन है, जहां हमने नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग और काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी सहित नेपाल के विभिन्न जातीय समूहों के 999 व्यक्तियों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए सीक्वेंस का विश्लेषण किया है। और पाया कि अधिकांश नेपाली आबादी ने हिमालय के उचाई पर रहने वाले लोगो की तुलना में तराई की आबादी से अपने मातृ वंश को प्राप्त किया है"।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा की, "भारत और तिब्बत के साथ नेपाल के सांस्कृतिक संबंध उनके अनुवांशिक इतिहास में भी परिलक्षित होते हैं।"

इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों ने शोधकर्ताओं को इतिहास और अतीत की डेमोग्राफ़िक घटनाओं के बारे में कई घटनाक्रमों को पता करने में मदद की जिसने वर्तमान नेपाली आनुवंशिक विविधता को बनाया। अध्ययन के प्रथम लेखक त्रिभुवन विश्वविद्यालय, राजदीप बसनेट ने बताया कि "हमारे अध्ययन से पता चला है कि नेपालियों के प्राचीन अनुवांशिक डीएनए को धीरे-धीरे विभिन्न मिश्रण एपिसोड द्वारा बदल दिया गया था; साथ ही दक्षिणपूर्व तिब्बत के रास्ते 3.8-6 हजार साल पहले लोगो के हिमालय पार करने के प्रमाण मिले है”।
डीएसटी – बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज़, लखनऊ के डॉ. नीरज राय ने कहा कि "नेवार और मगर जैसे तिबेतो-बर्मन समुदायों की ऊंचाई पर रहने वाले तिब्बतियों/शेरपाओं से डीएनए के आधार पर काफी विभिन्नता दिखती है । इतिहास, पुरातात्विक और आनुवंशिक जानकारी का उपयोग करते हुए इस अध्ययन ने हमें नेपाल के तिबेतो-बर्मन समुदायों के जनसंख्या इतिहास को समझने में मदद की है।'
सीएसआईआर-सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के निदेशक डॉ विनय के नंदीकुरी ने कहा, "इस तरह का अध्ययन प्रारंभिक मानव माइग्रेशन और विभिन्न आबादी की आनुवंशिक समानताएं स्थापित की बेहतर समझ के लिए सहायक है।"
अध्ययन का ऑनलाइन लिंकः

सम्पर्क सूत्र - K. Thangaraj (9908213822)

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https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/varanasi/bhu-research-on-nepalese-the-matrilineal-ancestry-of-nepali-populations
Date Downloaded
2022-09-20T00:00:00Z
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https://www.amarujala.com/chandigarh/no-thalassemia-victim-child-found-in-chandigarh-for-three-years-chandigarh-news-pkl463045069
Headline
चंडीगढ़ में तीन साल से नहीं मिला कोई थैलेसीमिया पीड़ित बच्चा
Date Published
2022-09-21T02:24:11+05:30
Date Published Raw
2022-09-21T02:24:11+05:30
Date Modified
2022-09-21T02:24:11+05:30
Date Modified Raw
2022-09-21T02:24:11+05:30
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    • Name: पंचकुला ब्‍यूरो
    • Name Raw: पंचकुला ब्‍यूरो
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चंडीगढ़ में तीन साल से नहीं मिला कोई थैलेसीमिया पीड़ित बच्चा
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चंडीगढ़। चंडीगढ़ में पिछले तीन साल में एक भी थैलेसीमिक बच्चे का जन्म नहीं हुआ। यह शहर के लिए अच्छी खबर है। इससे साबित होता है कि आनुवांशिक माने जाने वाली इस बीमारी को लेकर शहर के युवा जागरूक हो रहे हैं। शहर में संचालित थैलेसीमिक चैरिटेबल ट्रस्ट में एक भी संक्रमित बच्चा इलाज के लिए पंजीकृत नहीं किया गया है जबकि हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान के 450 थैलेसीमिक बच्चों को पंजीकृत किया जा चुका है।
दूसरे प्रदेशों से पंजीकरण का क्रम अब भी जारी है लेकिन चंडीगढ़ में संक्रमित बच्चे के जन्म का आंकड़ा सितंबर 2019 से शून्य पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान होने वाले हाई परफारमेंस लिक्विड कोमैटोग्राफी (एचपीएलसी) टेस्ट से इसकी स्क्रीनिंग की जा सकती है। ट्राइसिटी में यह टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया है। इसकी सुविधा पीजीआई में उपलब्ध है। उधर ट्रस्ट के सदस्य युवाओं को इस रोग के प्रति जागरूक करने में जुटे हुए हैं।
ये लक्षण हैं सामान्य
पीलिया, पीली त्वचा, नींद न आना, थकान, छाती में दर्द, सांस लेने में कठिनाई, तेज धड़कन, विकास में बाधा, बेहोशी, संक्रमण का अधिक खतरा थैलेसीमिक होने के सामान्य लक्षण हैं।
पंजीकृत बच्चों को मिल रहा मुफ्त इलाज
थैलेसीमिक चैरिटेबल ट्रस्ट ऐसे मरीजों के लिए 1985 से नियमित रक्तदान शिविर आयोजित कर रहा है। वर्तमान में पीजीआई और जीएमसीएच 32 में दो दिवसीय देखभाल केंद्रों में 450 थैलेसीमिक बच्चे पंजीकृत हैं, जिनका इलाज हो रहा है। सभी रोगियों को खून चढ़ाने के लिए मुफ्त चिकित्सा सामग्री उपलब्ध कराई जाती है और गरीब रोगियों को निशुल्क दवाएं भी दी जाती हैं।
क्या है मर्ज, आप भी जान लें
-थैलेसीमिया रोग एक तरह का रक्त विकार है। इसमें बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण सही ढंग से नहीं हो पाता है। इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है। इस कारण इन बच्चों को हर 21 दिन बाद कम से कम एक यूनिट रक्त की जरूरत होती है।
-थैलेसीमिया एक वंशानुगत रोग है। अगर माता या पिता किसी एक में या दोनों में थैलेसीमिया के लक्षण हैं तो यह रोग बच्चे में जा सकता है इसलिए बेहतर होता है कि बच्चा प्लान करने या शादी से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेने चाहिए।
-माता-पिता दोनों को ही यह रोग है लेकिन दोनों में माइल्ड (कम घातक) है तो बच्चे को थैलेसीमिया होने की आशंका बहुत अधिक होती है। साथ ही बच्चे में यह रोग गंभीर स्थिति में हो सकता है, जबकि माता-पिता में रोग की गंभीर स्थिति नहीं होती है।
- माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग है और माइल्ड है तो आमतौर पर बच्चों में यह रोग ट्रांसफर नहीं होता है। यदि हो भी जाता है तो बच्चा अपना जीवन लगभग सामान्य तरीके से जी पाता है। कई बार तो उसे जीवनभर पता ही नहीं चलता कि उसके शरीर में कोई दिक्कत भी है।
आंकड़े बयां कर रहे बदलाव की बयार
-2016 से 19 के बीच ट्राइसिटी में पांच थैलेसीमिक बच्चों ने जन्म लिया था। इसमें से तीन बच्चे पंचकूला, एक मोहाली और एक चंडीगढ़ का है। चंडीगढ़ में पंजीकृत बच्चे का जन्म 2019 में हुआ था, जबकि मोहाली में 2018 और पंचकूला में 2019 में दो व 2020 में एक बच्चे ने जन्म लिया था।
-2019 से 2022 सितंबर के बीच ट्रस्ट में पांच बच्चों को पंजीकृत किया गया है। उनमें से एक बच्चा चंडीगढ़ और मोहाली व पंचकूला के दो-दो हैं। चंडीगढ़ वाले बच्चे की जन्मतिथि 2019, पंचकूला के क्रमश: 2020 और 2021 व मोहाली के क्रमश: 2020 व 2021 है।
कोट-
थैलेसीमिया को समाप्त करने के लिए ट्रस्ट के सदस्य 38 साल से लगातार प्रयास कर रहे हैं। अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, सार्वजनिक स्थानों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान एचपीएलसी टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया है। इससे गर्भ में ही बच्चे की स्क्रीनिंग कर ली जाती है। वहीं शादी से पहले मेडिकल कुंडली मिलवाने वाले युवाओं की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। जागरूकता का ही परिणाम है तो पिछले तीन वर्षों के दौरान चंडीगढ़ में एक भी थैलेसीमिक बच्चे का जन्म नहीं हुआ।
-राजिंदर कालरा
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चंडीगढ़। चंडीगढ़ में पिछले तीन साल में एक भी थैलेसीमिक बच्चे का जन्म नहीं हुआ। यह शहर के लिए अच्छी खबर है। इससे साबित होता है कि आनुवांशिक माने जाने वाली इस बीमारी को लेकर शहर के युवा जागरूक हो रहे हैं। शहर में संचालित थैलेसीमिक चैरिटेबल ट्रस्ट में एक भी संक्रमित बच्चा इलाज के लिए पंजीकृत नहीं किया गया है जबकि हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान के 450 थैलेसीमिक बच्चों को पंजीकृत किया जा चुका है।
दूसरे प्रदेशों से पंजीकरण का क्रम अब भी जारी है लेकिन चंडीगढ़ में संक्रमित बच्चे के जन्म का आंकड़ा सितंबर 2019 से शून्य पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान होने वाले हाई परफारमेंस लिक्विड कोमैटोग्राफी (एचपीएलसी) टेस्ट से इसकी स्क्रीनिंग की जा सकती है। ट्राइसिटी में यह टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया है। इसकी सुविधा पीजीआई में उपलब्ध है। उधर ट्रस्ट के सदस्य युवाओं को इस रोग के प्रति जागरूक करने में जुटे हुए हैं।
ये लक्षण हैं सामान्य
पीलिया, पीली त्वचा, नींद न आना, थकान, छाती में दर्द, सांस लेने में कठिनाई, तेज धड़कन, विकास में बाधा, बेहोशी, संक्रमण का अधिक खतरा थैलेसीमिक होने के सामान्य लक्षण हैं।
पंजीकृत बच्चों को मिल रहा मुफ्त इलाज
थैलेसीमिक चैरिटेबल ट्रस्ट ऐसे मरीजों के लिए 1985 से नियमित रक्तदान शिविर आयोजित कर रहा है। वर्तमान में पीजीआई और जीएमसीएच 32 में दो दिवसीय देखभाल केंद्रों में 450 थैलेसीमिक बच्चे पंजीकृत हैं, जिनका इलाज हो रहा है। सभी रोगियों को खून चढ़ाने के लिए मुफ्त चिकित्सा सामग्री उपलब्ध कराई जाती है और गरीब रोगियों को निशुल्क दवाएं भी दी जाती हैं।
क्या है मर्ज, आप भी जान लें
-थैलेसीमिया रोग एक तरह का रक्त विकार है। इसमें बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण सही ढंग से नहीं हो पाता है। इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है। इस कारण इन बच्चों को हर 21 दिन बाद कम से कम एक यूनिट रक्त की जरूरत होती है।
-थैलेसीमिया एक वंशानुगत रोग है। अगर माता या पिता किसी एक में या दोनों में थैलेसीमिया के लक्षण हैं तो यह रोग बच्चे में जा सकता है इसलिए बेहतर होता है कि बच्चा प्लान करने या शादी से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेने चाहिए।
-माता-पिता दोनों को ही यह रोग है लेकिन दोनों में माइल्ड (कम घातक) है तो बच्चे को थैलेसीमिया होने की आशंका बहुत अधिक होती है। साथ ही बच्चे में यह रोग गंभीर स्थिति में हो सकता है, जबकि माता-पिता में रोग की गंभीर स्थिति नहीं होती है।
- माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग है और माइल्ड है तो आमतौर पर बच्चों में यह रोग ट्रांसफर नहीं होता है। यदि हो भी जाता है तो बच्चा अपना जीवन लगभग सामान्य तरीके से जी पाता है। कई बार तो उसे जीवनभर पता ही नहीं चलता कि उसके शरीर में कोई दिक्कत भी है।
आंकड़े बयां कर रहे बदलाव की बयार
-2016 से 19 के बीच ट्राइसिटी में पांच थैलेसीमिक बच्चों ने जन्म लिया था। इसमें से तीन बच्चे पंचकूला, एक मोहाली और एक चंडीगढ़ का है। चंडीगढ़ में पंजीकृत बच्चे का जन्म 2019 में हुआ था, जबकि मोहाली में 2018 और पंचकूला में 2019 में दो व 2020 में एक बच्चे ने जन्म लिया था।
-2019 से 2022 सितंबर के बीच ट्रस्ट में पांच बच्चों को पंजीकृत किया गया है। उनमें से एक बच्चा चंडीगढ़ और मोहाली व पंचकूला के दो-दो हैं। चंडीगढ़ वाले बच्चे की जन्मतिथि 2019, पंचकूला के क्रमश: 2020 और 2021 व मोहाली के क्रमश: 2020 व 2021 है।
कोट-
थैलेसीमिया को समाप्त करने के लिए ट्रस्ट के सदस्य 38 साल से लगातार प्रयास कर रहे हैं। अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, सार्वजनिक स्थानों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान एचपीएलसी टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया है। इससे गर्भ में ही बच्चे की स्क्रीनिंग कर ली जाती है। वहीं शादी से पहले मेडिकल कुंडली मिलवाने वाले युवाओं की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। जागरूकता का ही परिणाम है तो पिछले तीन वर्षों के दौरान चंडीगढ़ में एक भी थैलेसीमिक बच्चे का जन्म नहीं हुआ।
-राजिंदर कालरा

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